शनिवार, 14 सितंबर 2013

ज्योति वंदना / नरेन्द्र शर्मा



जीवन की अंधियारी

रात हो उजारी!

धरती पर धरो चरण

तिमिर-तम हारी

परम व्योमचारी!

चरण धरो, दीपंकर,

जाए कट तिमिर-पाश!

दिशि-दिशि में चरण धूलि

छाए बन कर-प्रकाश!

आओ, नक्षत्र-पुरुष,

गगन-वन-विहारी

परम व्योमचारी!

आओ तुम, दीपों को

निरावरण करे निशा!

चरणों में स्वर्ण-हास

बिखरा दे दिशा-दिशा!

पा कर आलोक,

मृत्यु-लोक हो सुखारी

नयन हों पुजारी!

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