दोनों ओर प्रेम
पलता है !
सखि पतंग भी जलता
है हा ! दीपक भी जलता है !!
सीस हिलाकर दीपक
कहता
बंधु वृथा ही तू
क्यों दहता
पर पतंग पड़कर ही
रहता
कितनी विह्वलता
है!
दोनों ओर प्रेम
पलता है !
बचकर हाय पतंग
मरे क्या
प्रणय छोड़कर
प्राण धरे क्या
जले नही तो मरा
करें क्या
क्या यह असफलता
है!
दोनों ओर प्रेम
पलता है !
कहता है पतंग मन
मारे
तुम महान मैं लघु
पर प्यारे
क्या न मरण भी
हाथ हमारे
शरण किसे छलता
है!
दोनों ओर प्रेम
पलता है !
दीपक के जलने में
आली
फिर भी है जीवन
की लाली
किन्तु पतंग
भाग्य लिपि काली
किसका वश चलता है
!
दोनों ओर प्रेम
पलता है!
जगती वणिग्वृत्ति
है रखती
उसे चाहती जिससे
चखती
काम नही परिणाम
निरखती
मुझको ही खलता
है!
दोनों ओर प्रेम
पलता है!
बहुत सुन्दर रचना , कुलदीप भाई
जवाब देंहटाएंनया प्रकाशन --: दीप दिल से जलाओ तो कोईबात बन
बीता प्रकाशन --: 8in1 प्लेयर डाउनलोड करें
इस रचना को साझा करने के लिए धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंhttp://savanxxx.blogspot.in